Tuesday, October 11, 2011

कृप्या अपने किये की जिम्मेदारी ले...

पता नहीं क्यों लेकिन आज तक मुझे एक बात समझ नहीं आई की हम अपने आप को सही साबित करने के लिए दूसरों को गलत क्यों साबित करना चाहते है | आज कल एक राजनेता ( वैसे तो लोग समय बचाने या आलस के कारण इस प्रजाति को नेता बोलते है किन्तु मैं राजनेता बोलना पसंद करता हूँ ) दूसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप तो ऐसे लगाता है जैसे कोई प्रतियोगिता चल रही है और सबसे ज्यादा आरोप लगाने वाले को कोई पुरस्कार मिलने वाला है | मुझे अच्छे से जानने वाले ये बात जरुर जानते है की मैं कभी अपनी चीज़ को अच्छा कहने के लिए दूसरों की चीज़ को बुरा नहीं कहता हूँ क्योंकि मुझे लगता है हर व्यक्ति सौ फीसदी अच्छा या बुरा नहीं हो सकता है |
मेरा मानना यह है की अगर आपके पास कुछ है जो की आपकी नज़र में अच्छा है वो बाकि लोगों की नज़र में भी अच्छा हो ये जरुरी नहीं है और आपके पास जो है उसको अच्छा साबित करने के लिए दूसरों पर किसी तरह का आक्षेप लगाना गलत है | अगर हम खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए दूसरों को नीचा दिखाते है या साबित करने की कोशिश करते है तो कही न कही हम अपनी कमजोरी को छिपाना चाह रहे होते है |
हमें हमेशा ध्यान रहना चाहिए की "अह्म ब्रह्मास्मि" का परिणाम कभी सुखद नहीं हो सकता है क्योंकि स्वयं ब्रह्मा भी खुद को सर्वश्रेष्ठ नहीं मानते है | हम परमात्मा को एक शक्ति के रूप में पूजते है और कर्म और भाग्य में विश्वास भी करते है | कुछ लोग कर्म में विश्वास रखते है और कुछ भाग्य में , लेकिन अंततः हमें जुड़ना उस परमात्मा से ही है |
मैं व्यक्तिगत रूप से स्वयं को सिर्फ अपने ज़मीर के प्रति जवाबदेह मानता हूँ क्योंकि मुझे लगता है की मेरा ज़मीर मुझे मेरे भगवान् से जोड़ता है और अगर कोई शक्ति है जो आपके कर्मों का या आपके भाग्य का लेखा जोखा रख रही है तो वो आपके ज़मीर से आपका मूल्यांकन करवा रही है |
आजकल संचार साधनों के कारण हमें तुरंत पता चल जाता है की किसने किसके लिए क्या क्यों और कब कहा | मुझे लगता है की अगर हम किसी पर एक उंगली उठा रहे है तो बाकि तीन हमारी तरफ है इसलिए हमें किसी की बात से सहमत या असहमत होने का अधिकार तो है लेकिन उसको सही या गलत कहने का अधिकार नहीं है | हमें अपनी बात को मजबूती से रखना चाहिए बजाए दूसरों की बात को गलत साबित करने की कोशिश करने के...

Friday, June 17, 2011

मेरा प्रेक्टिकल न होना...

जब भी मैं अपनी ३१ साला ज़िन्दगी का आंकलन करने की एक असफल सी कोशिश करता हूँ तब-तब मुझे एक बात बहुत परेशान करती है और वो है मेरा प्रक्टिकल न होना...
बचपन से मैं थोडा लीक से अलग चलने वाला बन्दा मानता रहा हूँ खुद को लेकिन जब-जब मैं खुद को अतीत के आईने में देखता हूँ तब-तब मेरा ये भ्रम टूट सा जाता है क्योंकि कहीं ना कहीं जब भी मैंने लीक से हट कर चलने की गुस्ताखी की है मेरे प्रयास को एक अति इमोशनल अंदाज़ में दबा दिया गया है और मैं खुद उस दबाव में आ गया हूँ क्योंकि मैं खुद को प्रेक्टिकल समझता तो हूँ लेकिन असलियत में तो मैं एक इमोशनल व्यक्तित्व का मालिक या यूँ कहे की गुलाम हूँ |
बचपन में जब भी मुझे कोई चाहत होती थी मैं अपने माता-पिता को बताने में हमेशा झिझकता था क्योंकि मेरे मन में हमेशा ये डर रहता था कि कहीं वो ना तो नहीं कर देंगे और अक्सर होता भी यही था | मुझे नहीं पता इस डर के पीछे कारण क्या था लेकिन ऐसा अक्सर होता था |
थोडा बड़ा हुआ तो मैंने आक्रामक रुख अपनाना चालू कर दिया और मन में एक बात को घर करने दिया कि जो आसानी से ना मिले उसे लड़ कर हासिल करो और कई बार मैं सफल भी हुआ लेकिन उस चाहत को पाने कि जो ख़ुशी मुझे महसूस होना चाहिए थी वो मुझे नहीं हो पायी क्योंकि मैं आक्रामक बन रहा था प्रक्टिकल नहीं...
अपने जीवन के कुछ बड़े फैसले मैं लेना चाहता था लेकिन मुझे नहीं लेने दिए गए, हर बार इस समाज कि दुहाई दे कर मेरे अरमानों को नज़र-अंदाज़ कर दिया गया | मैं फिर भी शायद किसी को दोष नहीं दे सकता हूँ क्योंकि गलती मेरी ही थी कि मैंने खुद के बारे में न सोच कर दूसरों के बारे में सोचा और जो खुद के बारे में नहीं सोच सकता है उसके बारे में तो आजकल भगवान्  भी नहीं सोचते है क्योंकि उन्होंने भी आजकल के हिसाब से अपने आप को अपग्रेड कर लिया है और वो भी प्रेक्टिकल हो गए है |
मैं आज जहां हु जिस स्थिति  में हूँ खुद को खुश नहीं रख पा रहा हूँ क्योंकि ये वो लाइफ नहीं है जो मैंने खुद के लिए सोची थी और अभी भी प्रेक्टिकल नहीं हो पा रहा हूँ कि इन परिस्थितियों में भी खुश रहना सीख सकूँ | आज कि दुनिया का एक बहुत महत्वपूर्ण सबक मैंने जो नहीं सिखा है कि या तो इमोशनल हो कर अपने अरमानों को एक संदूक में ताला मार कर गहरे समुन्दर में फेंक दो और वही करो जो दुसरे चाहते है या प्रेक्टिकल बन जाओ | आज कि दुनिया में मेरे जैसे त्रिशंकुओं के लिए कोई जगह नहीं है जिन्हें ये ग़लतफ़हमी है कि वो इमोशनल और प्रेक्टिकल के बीच एक पुल का काम कर सकते है और असल में हम जैसे लोग पुल नहीं त्रिशंकु होते है |