Thursday, December 30, 2010

कुछ अलग करना चाहता हूँ...

करीब-करीब साल भर बाद आज थोडा वक़्त मिला है कुछ लिखने लायक पर बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा है कि क्या लिखा जाए | साल भर में परिस्थितियां बहुत बदल सी गयी लगती है जैसे अब शादीशुदा हूँ और इस बात को हँसते हुए बताऊ या रोते हुए पता नहीं...
अब कुछ बड़ा करने का मन कर रहा है समथिंग रिअली बिग... आजकल ऑफिस में तो ऐसा लगता है जैसे टाइम पास करने आये हुए है और बदकिस्मती से वह भी नहीं कर पाते है और जैसे मन उकताहट कि परिकाष्ठा से गुजर रहा है | आज मैं हिंदुस्तान में बनी पहली एनिमेशन फिल्म देख रहा था तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था कि १९७० के दशक में भी भारतीय एनिमेशन बहुत अच्छा हुआ करता था, शायद आपको याद हो " एक चिड़ियाँ अनेक चिड़ियाँ...", हांजी ये हिंदुस्तान में बनी पहली एनिमेशन फिल्म थी | वैसे आप सोच रहे होंगे कि मैंने बात कि शुरुआत कहा से कि थी और मैं बात को कहाँ ले गया या ले जा रहा हूँ पर क्या करू कुछ लिखना चाहता हूँ और समझ नहीं आ रहा कि क्या लिखना चाह रहा हूँ :(
कल सोच रहा था कि थोडा स्मिथ को भला-बुरा बोलू, वैसे भला तो क्या बोलता बुरा कि बोलता अगर बोलता तो क्योंकि मैं एक आलोचक हूँ और ऐसा मैं नहीं कहता मेरे आस पास वाले कहते हैं | आजकल लोग ये भूल गए है कि "निंदक नियरे रखिये..." वैसे मुझे कहीं बाहर भी नहीं जाना पड़ता है क्योंकि कुछ लोग मेरे घर में ही मिल जाते है इस तरह के जो निंदक पास नहीं रखना चाहते हैं | मुझसे लोग कहते है कि मैं किसी कि नहीं सुनता पर कोई ये जाने कि कोशिश नहीं करता कि क्यों नहीं सुनता हूँ |
आजकल सबको यही लगता है कि सिर्फ वह ही सही है तो ये मुझे भी लगे कि मैं ही सही हूँ तो इसमें गलत क्या हैं? सब केवल गल्तियाँ गिनाते है तो मैं भी गिनाता हू और इसमें गलत क्या है ????
आज भी मेरे ऑफिस में कुछ काम नहीं हुआ क्योंकि विदेश में सब क्रिसमस और न्यू इयर जो बना रहे है और हम यहाँ रोज़ ८ घंटे उनका इन्तजार कर रहे है कि उनका बन जाए तो हम काम चालू करे क्यों ऑफिस तो आना ही है चाहे काम हो या ना हो |
वैसे अगले कुछ दिनों में मैं कुछ लिखू ना लिखू इसलिए अभी लिख देता हूँ कि हर उस को नव वर्ष कि शुभकामनायें जो गलती से मेरे इस ब्लॉग को पढ़ रहा हैं |
चलिए हुआ तो घर जा कर कुछ लिखने कि कोशिश करूँगा...

Friday, February 19, 2010

व्यंग्य तो पिताजी लिखा करते थे

आज सोचा की अपने बारे में कुछ लिखा जाए. वो क्या है ना कि बहुत दिनों से कुछ लोग मेरे द्वारा कि गयी आलोचनाओ ध्यान दीजियेगा मेरे द्वारा कि गयी आलोचनाओ से प्रभावित हो कर मुझसे बोल रहे थे कि मैं व्यंग्य लिखना शुरू क्यों नहीं करता हूँ तो अनायास ही मैं बोल पड़ा कि "व्यंग्य तो पिताजी लिखा करते थे" हांजी बिलकुल सही सुना आपने कि मैंने कहा कि "व्यंग्य तो पिताजी लिखा करते थे".
अब जो लोग हमारी तरह लापता गंज के प्रशंसक है वो लोग तो कहेंगे कि लो मारा डायलाग इसने लापता गंज से चुरा कर, लेकिन दोस्त ये सही बात है कि वाकई व्यंग्य तो पिताजी लिखा करते थे और आज हम लिखने पढने में जो भी है कही ना कही उनके कारण ही है, उनको देख कर ही हमने सिखा है कि अगर हमे अपनी बात व्यंग्यात्मक कहना है तो हम कैसे कह सकते है लेकिन मुद्दे कि बात तो ये है कि मैं तो अपनों में एक आलोचक के रूप में कुख्यात हूँ, जी आलोचक कभी प्रख्यात नहीं होते है वो तो कुख्यात होते है. सही बात है भैया आलोचना करना कोई सभ्य लोगों का काम थोड़े ही होता है.
अब वो दिन नहीं रहे कि हम बोले कि निंदक निअरे रखिये...अब तो भैया निंदक कुछ बोल कर तो देखे उसके दांत तोड़ दिए जायेंगे, वैसे एक सच ये भी है कि आज कल के निंदक भी निंदक कम जलन के कारण बोलने वाले ज्यादा हो गए है.
चलिए अब हम बंद करते है है क्योंकि पापा कसम लापता गंज का टाइम जो हो गया है.